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सच्चे स्त्री-विमर्श से सजी हैं फ़िलहाल यूॅं ही रहने दो संग्रह की कहानियां


 

book


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लहाल यूँ ही रहने दो

विधा: कहानी-संग्रह 
लेखिका: शिल्पा शर्मा
प्रकाशक: वनिका पब्लिकेशन्स
संस्करण: प्रथम 2023
मूल्य: 250/-
रेटिंग: 4/5

 

फ़िलहाल यूं ही रहने दो कहानी संग्रह की कहानियां आधुनिक समाज की पृष्ठभूमि पर उकेरे गए वो शब्द चित्र हैं, जो एक ख़ुशनुमा एहसास दे जाते हैं. रत्ती भर भी उपदेशात्मक हुए बिना सकारात्मक सोच का संदेश दे जाना इसकी कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता है.

 

इन कहानियों की दूसरी विशेषता है- बिना काल्पनिक ट्विस्ट ऐंड टर्न के या बिना किसी चौंका देने वाली वीभत्स सच्चाई के चित्रण के शुरू से अंत तक उत्सुकता बनाए रखना. हालांकि शुरू की एक-दो कहानियां अमानत और अनवरत कुछ अधिक सीधी-सरल लगती हैं, पर जैसे-जैसे आगे बढ़ते हैं, लगता है लेखिका ने कहानियों को अपने लेखन के प्रौढ़ होने के क्रम में रखा है.

 

आगे की कहानियों में सरलता भी है और घटनाएं उत्सुकता जगाकर बांधे रखने और अंत में सकारात्मक दृष्टिकोण जगाने वाला सुखद एहसास पाठकों के दिल में उतारने में सक्षम होती गईं हैं. कुल मिलाकर एक पठनीय पुस्तक, जो हमारे आधुनिक समाज का वो आईना दिखाती है, जिसमें संघर्ष और कठिनाइयां हैं, पर उनसे जूझने की ललक भी है. भाषा सरल और प्रासंगिक है और शैली चुस्त और बिंदास.

 

केंद्रीय संवेदना के चुनाव की बात करें तो इस संकलन की कहानियों की सबसे बड़ी ख़ूबी फ़ेक फ़ेमिनिज़्म से बचते हुए बिल्कुल सीधे सच्चे स्त्री-विमर्श को प्रस्तुत करना है. ‘फ़िलहाल यूँ ही रहने दो’ में द्वंद्व है, किसी निर्णय पर न पहुंच पाने की स्थिति है तो ‘विकल्प’ में एक निर्णय, ‘एक आशियाना ऐसा भी’ में माता-पिता के लिए त्याग है तो ‘दक्षता पर दिल आ गया’ में पिता को उनकी ग़लती का एहसास दिलाने की कोशिश. ‘पसंद अपनी अपनी’ में त्रासद परिस्थिति से निकलने की दृढ़ता है तो ‘तो क्या समझूं मैं’ में प्यार के स्वीकार की. ये सभी निर्णय नायिकाओं के अपने हैं और यही भावनात्मक आत्मनिर्भरता की ओर क़दम बढ़ाने के संकेत भी, जिनकी आज के समाज को सबसे अधिक ज़रूरत है.

क्यों पढ़ें: देश की आधी आबादी यानी महिलाओं में आ रहे बदलाव को, महिलाओं के अंदर पनपती जूझने की क्षमता को जानने और समझने के लिए. साथ ही, महिलाओं में आ रहे इस बदलाव में उनका संबल बन रहे पुरुषों (पिता, भाई, पति, सहकर्मी और प्रेमी भी) की भूमिका जानने के लिए. सहज, सरल भाषा में बिना उपदेशात्मक हुए ऐसी कहानियों को पढ़ने के लिए जो अर्थपूर्ण हैं, सकारात्मक हैं और आपके मन को ख़ुशी दे जाएंगी.

 

-भावना प्रकाश


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