13 की उम्र में 5 हजार में बिकी पहली पेटिंग:देश-विदेश से मिलते ऑर्डर, आर्ट साइकोथेरेपी से होती डिप्रेशन-एंग्जाइटी के मरीजों की मदद
'पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं'... टैलेंट कभी छुपाने से नहीं छुपता और जब हुनर को बढ़ावा मिले तो बचपन में ही आर्टिस्ट का जन्म हो जाता है।
गौरी मिनोचा ने छोटी उम्र में ही पेंटिंग बनानी शुरू कर दी थीं। जब उनके इस हुनर को उनकी मां और स्कूल टीचर ने पहचाना तो उसे तराशने में जुट गईं। गौरी भले ही अभी स्टूडेंट हैं लेकिन उनकी पेंटिंग देश-विदेश में मशहूर हैं।
‘ये मैं हूं’ में आज मिलिए दिल्ली की उभरती आर्टिस्ट गौरी मिनोचा से।
आर्ट और साइकोलॉजी दोनों दिल के करीब
मैं दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से साइकोलॉजी में बीए ऑनर्स की पढ़ाई कर रही हूं। अभी मैं लास्ट सेमेस्टर में हूं। मैं पढ़ाई में हमेशा अच्छी रही हूं। 12वीं क्लास में 99% मार्क्स आए तो मैंने साइकोलॉजी को चुना। दरअसल, मैं भविष्य में दिल्ली में आर्ट साइकोथेरेपी सेंटर शुरू करना चाहती हूं।
आर्ट और साइकोलॉजी दोनों ही मेरे मनपसंद विषय हैं। आर्ट साइकोथेरेपी में डिप्रेशन और एंग्जाइटी के शिकार लोगों को पेंटिंग करने को कहा जाता है और इसके जरिए उनके डिप्रेशन और एंग्जाइटी के स्तर की जांच होती है। आर्ट साइकोथेरेपी एक रिलैक्सेशन टेक्नीक है जो विदेशों में तो काफी मशहूर है लेकिन भारत में अभी इसका चलन कम है।
बचपन से रंगों से दोस्ती
मुझे बचपन से आर्ट से लगाव है। मां आर्टिस्ट के साथ बिजनेसवुमन भी हैं। वह एक आर्ट गैलरी भी चलाती हैं जिसमें कई मशहूर आर्टिस्ट की पेंटिंग एग्जीबिशन लगती रहती है। साथ ही वह बच्चों और बड़ों को पेटिंग की क्लास भी देती हैं। मेरा बचपन रंग-बिरंगे रंगों, तस्वीरों और आर्टिस्ट के बीच गुजरा।
मैं मां के साथ आर्ट गैलरी जाती और वहां घंटों पेंटिंग को निहारती।
कई बार उन पेंटिंग को हूबहू अपनी स्केच बुक में उकेर लेती।
एक बार एमएफ हुसैन की पेटिंग एग्जिबिशन लगी थी तो मैंने उनकी घोड़े वाली मशहूर पेटिंग की कॉपी बना दी।
तभी से मां को पता चल गया था कि मेरे अंदर एक आर्टिस्ट छुपा है।
स्कूल में ही मिलने लगी पहचान
मेरे टैलेंट को क्लास 6 के बाद ही पहचान मिलने लगी थी। मेरी आर्ट टीचर ने मुझे बहुत सपोर्ट किया। मुझे अपने इस टैलेंट के लिए कई अवार्ड भी मिले। मैं आर्ट के साथ स्पोर्ट्स में भी अच्छी हूं। क्लास 10, 11 और 12 में आर्ट की प्रोजेक्ट हेड रही। मैंने कई पेटिंग कॉम्पिटिशन में अपने स्कूल को अकेले ही रिप्रेजेंट किया।
स्कूल में जो भी गेस्ट आते, मैं ही उनकी पोट्रेट बनाती। एक बार मैंने मशहूर बांसुरी वादक हरिप्रसाद चौरसिया की भी पोट्रेट बनाया।
पेरेंट्स पर कभी पढ़ाई का प्रेशर नहीं बनाया
मैं अगर आज आर्टिस्ट बन पाई हूं तो यह मेरे पेरेंट्स की वजह से मुमकिन हो पाया है। उन्होंने मुझ पर कभी पढ़ाई का प्रेशर नहीं बनवाया। हमेशा एक्स्ट्रा कैरिकुलम एक्टिविटीज को बड़ावा दिया।
मैं क्लास से ज्यादा आर्ट रूम में समय बिताती लेकिन मैंने कभी पढ़ाई को नजरअंदाज नहीं किया।
जब मैं कॉलेज में आई, तभी से मैंने आर्ट को गंभीरता से लेना शुरू किया।
लाइफ में बैलेंस बिठाना जरूरी
कोरोना का समय सभी के लिए कठिन था लेकिन बतौर स्टूडेंट मेरे लिए यह समय इसलिए मुश्किल था क्योंकि तब मैं 12वीं में थी और हर बच्चे की तरह मैं अपने करियर को लेकर गंभीर थी।
मुझे तब समझ में नहीं आ रहा था कि ग्रेजुएशन के लिए मैं दिल्ली में रहूं या नहीं, आर्ट या साइकोलॉजी, किस सब्जेक्ट में ग्रेजुएशन करूं लेकिन फिर मैंने दिल्ली में रहकर ही पढ़ाई करने का फैसला लिया। मैं दिन में पढ़ाई करती हूं और रात को पेंटिंग बनाती हूं।
पहली कमाई 5 हजार रुपए की हुई
स्कूल से ही मैंने अपनी पेंटिंग की एग्जिबिशन लगानी शुरू कर दी थी। 13 साल की उम्र में मेरी पहली पेंटिंग 5 हजार रुपए में बिकी और वह मेरी पहली कमाई थी।
जुलाई 2022 में पहली बार मेरी सोलो आर्ट एग्जिबिशन लगी जिसके बाद मुझे पेंटिंग के ऑर्डर मिलने लगे।
शुरुआत में मैंने अपनी पेंटिंग को अपने सभी रिलेटिव्स को भेजा था। उन्होंने पेंटिंग अपने घर पर लगाई, तो उनके मेहमानों को भी वह इतनी पसंद आई कि मुझे पेंटिंग भेजने के लिए कॉल आने लगीं। मेरे ज्यादातर रिश्तेदार विदेशों में रहते हैं।
इस तरह मेरा टैलेंट विदेशों में भी फैला और आज मेरी पेंटिंग अमेरिका, लंदन, मुंबई, दिल्ली समेत कई जगह पहुंच गई हैं।
मैं एब्स्ट्रेक्ट पेंटर हूं
मैं एब्सट्रेक्ट पेंटिंग बनाती हूं जिसे ज्यादा आर्टिस्ट नहीं बनाते। एब्सट्रेक्ट पेटिंग में एक भाव और खास सोच शामिल होती है जिसका कोई आकार नहीं होता इसलिए वह एब्सट्रेक्ट कहलाती है। मेरी पेंटिंग मेरी पर्सनैलिटी को कॉम्पिमेंट करती हैं।
हमारे कॉलेज में एग्जाम बहुत होते हैं तो कई बार मैं खुद को रिलैक्स करने के लिए अपने घर पर बने स्टूडियो में ही पेंटिंग बनाती हूं। कभी चारकोल से किसी का फेस बनाती हूं तो कभी अपनी इमेजिनेशन को उकेरती हूं।
हर आर्टिस्ट को ट्रैवल करना जरूरी
मेरा मानना है कि हर आर्टिस्ट को घूमना बहुत जरूरी है। मुझे घूमते-घूमते कई चीजें इंस्पायर करती हैं। मैं जहां भी घूमने जाती हूं, वहां लोगों के इमोशन्स और एक्सप्रेशन को ऑब्जर्व करती हूं या जो भी चीजें मुझे पसंद आती हैं, मैं उनकी फोटो क्लिक कर लेती हूं और बाद में उसे कैनवास पर उकेरती हूं। इसलिए मेरी पेंटिंग्स में कभी मकबरे, कभी बिल्डिंग तो कभी लोगों के चेहरे दिखते हैं।
मुझे लगता है कि हर आर्टिस्ट को बाहर की दुनिया से रूबरू होना जरूरी है। अगर आप देख नहीं पाएंगे कि बाहर क्या हो रहा है तो आप अपनी आर्ट में वैराइटी नहीं ला सकते। मैं म्यूजियम और दूसरे आर्टिस्ट की पेंटिंग भी देखती हूं।
जब मैं डिजिटल पेंटिंग बनाती हूं तो मैं फोटो, हाथ से बनी पेंटिंग को एक साथ डिजिटली डिजाइन करती हूं।
दिल्ली के आर्ट हब में मेरी 12 पेंटिंग और दिल्ली के ही मशहूर ‘जगदीश स्टोर’ पर मेरी 9 पेंटिंग सेल के लिए आज लगी हुई हैं।
पर्सनल ब्रांडिंग का जमाना
मैं भले ही उभरती आर्टिस्ट हूं लेकिन मुझे लगता है कि हर आर्टिस्ट को अपनी मार्केट वैल्यू बनानी जरूरी है। अगर आप पेंटिंग करते हैं और किसी को पता नहीं, तो इसका कोई फायदा नहीं है इसलिए खुद की आर्ट को पब्लिसाइज करना जरूरी है।
हर आर्टिस्ट को क्रिएटिव होने के साथ-साथ बिजनेस में भी माहिर होना चाहिए। उन्हें अपने टैलेंट के हक में बने कॉपीराइट कानून के बारे में अलर्ट होना चाहिए क्योंकि कैनवास पर उकेरा गया हर डिजाइन आपकी अपनी पर्सनल प्रोपर्टी होती है, आपकी अपनी क्रिएटिव सोच होती है।
जब लोग आपको जानेंगे तभी आपकी आर्ट की कद्र होगी और आपकी मार्केट वैल्यू बढ़ेगी।
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