HOME /PHOTO GALLERY /LITERATURE /URDU POETRY FAIZ AHMAD FAIZ PAKISTANI SHAYAR SARI DUNIYA SE DOOR HO JAYE JO ZARA TERE PAAS HO BAITHE
मशहूर शायर फ़ैज अहमद फ़ैज का नाम दुनिया के महानतम शायरों और कवियों में गिना जाता है. वे विचारों से साम्यवादी थे और पाकिस्तान कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े थे. 20 नवम्बर, 1984 को उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली, लेकिन साहित्य की दुनिया में अपना नाम हमेशा हमेशा के लिए रोशन कर गए. गौरतलब है कि फ़ैज़ की कविता 'हम देखेंगे लाजिम है कि हम भी देखेंगे' को लेकर साल 2020 में भारत में काफी विवाद हुआ और उनकी नज्म को 'हिंदू विरोधी' बताया गया था, जबकि फैज़ ने ये नज्म जिया-उल-हक के संदर्भ में पाकिस्तानी सैन्य शासन के विरोध में लिखी थी. लेकिन इस नज्म को लोकप्रियता तब मिली, जब इसे गुलुकारा इक़बाल बानो ने लाहौर के एक स्टेडियम में काले रंग की साड़ी पहन कर 50000 सामईन के सामने ने गाया था.
News18 हिंदीLast Updated: November 20, 2023, 13:11 IST
"और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा, राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा..." 13 फरवरी 1911 को पंजाब के सियालकोट में जन्मे फैज़ अहमद फैज़ उर्दू के सबसे लोकप्रिय कवियों में से एक हैं. आधुनिक उर्दू शायरी को उन्होंने एक नई ऊंचाई दी. ये वही समय था, जब उर्दू साहित्य की दुनिया में साहिर लुधियानवी, कैफ़ी आज़मी और फ़िराक़ गोरखपुरी जैसे सितारे भी चमक रहे थे.
26
"अब अपना इख़्तियार है चाहे जहां चलें, रहबर से अपनी राह जुदा कर चुके हैं हम..." फैज़ अहमद फैज़ के पिता एक चरवाहा थे. उनकी आरंभिक शिक्षा उर्दू, अरबी तथा फ़ारसी में हुई जिसमें क़ुरआन को कंठस्थ करना भी शामिल था. इंग्लैंड की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से उन्होंन लॉ की डिग्री और सियालकोट वापस आकर वकालत शुरू की.
36
"सारी दुनिया से दूर हो जाए, जो ज़रा तेरे पास हो बैठे..." अंग्रेज़ी तथा अरबी में एमए करने के बावजूद फैज़ कविताएं उर्दू में लिखते थे. उनकी लिखी नज़्में आज भी हर जगह गुनगुनाई जाती हैं. फैज़ की कई नज़्मों में आम इंसान अपनी आवाज़ को पाता है.
46
"और क्या देखने को बाक़ी है, आप से दिल लगा के देख लिया..." फैज़ अहमद फैज़ बेहद क्रांतिकारी थे और यही कारण था कि उन्हें काफी समय जेल में बिताना पड़ा था. बटवारे के बाद फैज़ ने पाकिस्तान की हुकूमत के खिलाफ आवाज़ उठानी शुरू की. उन्होंने 1951 में लियाकत अली खान की सरकार के खिलाफ मौर्चा खोला. उन पर तख्तापलट की साजिश का आरोप लगाया गया और उन्हें 1951 से 1955 तक जेल हुई.
56
"आए तो यूं कि जैसे हमेशा थे मेहरबान, भूले तो यूं कि गोया कभी आश्ना न थे..." पांच सालों तक ब्रिटिश सेना में कर्नल पद पर अपनी सेवाएं देने वाले फैज़ ने एक ब्रिटिश महिला से विवाह किया. विभाजन के बाद फैज़ पाकिस्तान जाकर बस गए और वहां भी इंकलाबी शायरी लिखने का काम जारी रखा. गौरतलब है, कि पाकिस्तान में सरकार का तख़्ता पलट की कोशिश के जुर्म में जब फैज़ को कैद भी हुई, उस दौरान लिखी गई उनकी कविताएं ख़ासा चर्चित रहीं.
66
"हर चारागर को चारागरी से गुरेज़ था, वर्ना हमें जो दुख थे बहुत ला-दवा न थे..." 1977 में तत्कालीन आर्मी चीफ जिया उल हक ने पाकिस्तान में तख्ता पलट किया. जिया उल हक के शासन के खिलाफ फैज ने 'हम देखेंगे' नज़्म लिखी थी. 1963 में उन्हें लेनिन शांति पुरस्कार मिला था, साथ ही उन्हें 1984 में नोबेल पुरस्कार के लिए भी नामित गया था.
0 Comments