मां हमारी पहली गुरु होती है. हमें जीवन के शुरुआती पाठ पढ़ाती है. पर आपने ग़ौर किया होगा कि एक समय बाद पहली गुरु मां, शिष्या की भूमिका में भी आ जाती है. हमने आपको मां के शिष्यावाले रूप से मिलाने का फ़ैसला किया. इस क्रम में हमने टीवी की चार जानी-मानी अदाकाराओं की पहली गुरु से पूछा कि शिष्या की भूमिका में उन्होंने अपनी बेटियों से क्या सीखा है? समय के साथ उनके रिश्ते में क्या बदलाव आए हैं? एक और बात, कहते हैं कि बच्चे हमारा एक्सटेंशन होते हैं. इस लेख के लिए इन मांओं से बातचीत के दौरान हमने इस सच्चाई को काफ़ी क़रीब से महसूस किया. वाक़ई ये महिलाएं अपनी बेटियों में अपने सपने जी रही हैं. भले ही उन्होंने खुलकर यह बात न कही हो, पर बातों के भाव बिल्कुल यही थे. आप भी पढ़िए, इन मांओं के दिल की बात. आइए आज जानते हैं अभिनेत्री आयशा कडुसकर की मां लीना कडुसकर ने क्या सीखा है उनसे.
‘मुझे भी बना रही है मल्टीटास्कर’
लीना कडुसकर, फ़ैशन डिज़ाइनर
लीना बतौर बाल कलाकार टेलीविज़न पर पदार्पण करनेवाली और आजकल ये इन दिनों की बात है में नज़र आ रहीं आयशा कडुसकर की मां हैं. लीना पिछले 17-18 वर्षों से फ़ैशन डिज़ाइनिंग के क्षेत्र में हैं. बेटी आयशा महज़ सात साल की उम्र से ही टीवी सीरियल्स में काम कर रही है. लीना कहती हैं कि आयशा ने उन्हें जीवन के कई गुरुमंत्र सिखाए हैं.
सेल्फ़ डिसप्लीन से बन गई बात
‘‘आयशा ने छोटी-सी उम्र में सीरियल्स में काम करना शुरू किया था, तब परिवार के लोगों ने चिंता व्यक्त की थी,‘वह पढ़ाई में इतनी अच्छी है, कहीं ऐसा न हो कि उसकी पढ़ाई पीछे छूट जाए.’ हालांकि आयशा अपनी पढ़ाई को लेकर निश्चिंत थी. मुझे भी कभी नहीं लगा कि बच्चे पर बहुत ज़्यादा प्रेशर पड़ रहा है. मैंने देखा कि वो अपने काम को एन्जॉय कर रही थी. काम के साथ-साथ पढ़ाई भी मैनेज कर लेती थी. हम सेट पर बुक्स ले जाते थे. जब भी उसे टाइम मिलता, वो पढ़ने लगती. आयशा ने शुरू से ही सेल्फ़ डिसप्लीन मेंटेन किया हुआ है. यही उसकी सफलता का राज़ है. जब वह 10वीं में थी, तब उसे एक अच्छे सीरियल का ऑफ़र मिला था. उसके स्कूल की प्रिसिंपल ने कहा था इस साल उसे पढ़ने दीजिए. हम भी यही चाहते थे, पर आयशा ने कहा,‘मैं पढ़ाई और काम दोनों मैनेज कर सकती हूं.’ वह शूटिंग में व्यस्त रहती थी, स्कूल नहीं जा पाती थी, बावजूद उसके वह 10वीं कक्षा में 94 प्रतिशत मार्क्स लाने में सफल रही. यह उसके डेडिकेशन और फ़ोकस का ही नतीजा था. वह जो काम करती है अपना सौ फ़ीसदी देकर करती है. उसकी यह लगन और समर्पण देखकर मैं भी प्रेरित होती हूं.’’
दोस्ती में बदला प्रोटेक्टिव रिश्ता
‘‘आयशा बचपन से ही आज्ञाकारी और सिंसियर बच्ची रही है. हर काम बिना बोले ही कर देती थी. इसने मुझे डांटने का मौक़ा तक नहीं दिया. जब वह छोटी-थी तब मैं बहुत प्रोटेक्टिव हुआ करती थी. अब वह मेरे लिए बेटी से ज़्यादा एक दोस्त हो गई है. यहां तक कि मैं अपने प्रॉब्लम्स के सलूशन उससे मांगती हूं. ख़ासकर गैजेट्स के बारे में नई-नई बातें उससे सीखती रहती हूं. कभी-कभी लगता है कि यह मुझसे भी ज़्यादा मैच्योर है. उसने मुझे मेरे बिज़नेस से जुड़े कई ऐसे सुझाव दिए हैं, जिन्हें अपनाकर मेरे बिज़नेस की काफ़ी तरक़्क़ी हुई है. आयशा भी कुछ करने से पहले मुझसे राय लेती है. हम आपस में बातचीत करके किसी नतीजे पर पहुंचते हैं. कभी-कभी कुछ मुद्दों पर हमारी राय नहीं मिलती. हम शुरू-शुरू में अपनी असहमति जताते हैं, पर उसके कुछ समय बाद उस मुद्दे पर दोबारा बात करते हैं. और कोई समाधान ज़रूर निकाल लेते हैं. जैसे, बारहवीं के बाद उसे डॉक्टर बनना था. हालांकि उसे अभिनय में भी रुचि थी. मैंने उससे पूछा कि पहले तय कर लो कि तुम्हें करना क्या है. दोनों एक साथ नहीं हो सकता. अंतत: उसने अभिनय चुना.’’
बेटी से मिली जीवन की सीख
‘‘दोस्तों और परिवार के साथ तालमेल बिठाने की कला मैंने आयशा से सीखी है. बिज़ी रहने के बावजूद वह सबको टाइम देती है. वह बहुत मेहनती और फ़ोकस्ड है. कभी हार नहीं मानती. कई बार मुझे लगता है कि इतनी मेहनत के बाद बिज़नेस में उतना रिटर्न नहीं मिल रहा है, तो हतोत्साहित हो जाती हूं. फिर मैं आयशा को देखती हूं. ऐसा नहीं कि उसने असफलता का सामना न किया हो, पर वह चीज़ों को छोड़कर आगे बढ़ना जानती है. ‘मैं उसके जैसी क्यों नहीं हो सकती?’ यह सोचकर मैं अपने काम में दोगुनी ऊर्जा के साथ जुट जाती हूं. वह सही मायने में एक मल्टीटास्कर है. एक साथ कई काम कर सकती है और वो भी सफलतापूर्वक. उसकी उम्र में मैं इतना सब करने की सोच भी नहीं सकती थी. दरअस्ल, यह जनरेशन ही स्मार्ट है.’’
मैंने अपनी बेटी से सीखा:
सेल्फ़ डिसप्लीन, टाइम मैनेजमेंट, मल्टी टास्किंग और कभी भी हार न मानने का जज़्बा
NEXT STORY
0 Comments