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आज जब भारत अपनी आज़ादी के 75 वर्ष पूरे होने का जश्न मना रहा है, तो इस मौक़े पर भारत के लोकतंत्र की बुनियाद, उसके विकास और उन अहम संस्थानों के काम-काज का फिर से मूल्यांकन किया जाना चाहिए, जो भारत की लोकतांत्रिक प्रगति और स्थिरता की धुरी है. भारत में संसदीय लोकतंत्र के आग़ाज़ के वक़्त संघीय व्यवस्था के तहत जिन संस्थाओं का संविधान की बारीक़ बनावट और उपवनिवेशवादी विरासत के साथ उदय हुआ, उन्हीं संस्थानों ने लोकतंत्र की बुनियाद का काम किया, जिससे आगे चलकर भारत जैसे विशाल और विविधता भरे देश में लोकतंत्र को मज़बूती मिली. अपनी तमाम कमज़ोरियों और सीमाओं के बावुजूद, देश के प्रमुख लोकतांत्रिक अंग जैसे कि संसद, न्यायपालिका, राष्ट्रपति का पद, राजनीतिक दल, चुनाव आयोग, तीसरी पायदान की संस्थाएं और यहां तक कि सैन्य बलों ने भी भारत की संवैधानिक प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में अहम योगदान दिया है. देश में राजनीतिक स्थिरता सुनिश्चित की है, और सबसे अहम बात ये कि इन सबने मिलकर देश में प्रशासन और विकास संबंधी प्राथमिकताएं तय करने में मदद की. इसलिए, आज जब भारत अपनी आज़ादी के 75 साल पूरे होने का जश्न मना रहा है, तो ये वक़्त इस बात का आकलन करने के लिए बिल्कुल मुफ़ीद है कि देश के लोकतंत्र के ये अहम स्तंभ, इसके संस्थापकों की उम्मीदों पर कितने खरे उतरे हैं. दस छोटे लेखों वाली इस ब्लॉग सीरीज़ को दुनिया के सबसे क़ाबिल विद्वानों, विषय के जानकारों और इन्हें बरतने वालों ने लिखा है, जिसमें राष्ट्रपति के पद, संसद, कैबिनेट व्यवस्था, न्यायपालिका, राजनीतिक दलों, संघवाद, स्थानीय स्वशासन, चुनाव आयोग, सिविल सेवा और सैन्य-सरकारी संबंधों के अब तक के सफ़र की समीक्षा की गई है. इस सीरीज़ का मुख्य मक़सद, देश के अहम ऐतिहासिक पड़ावों और उपलब्धियों का आकलन करना, और ये पता लगाना है कि तमाम चुनौतियों के बावजूद ये संस्थाएं, वक़्त की मांग के हिसाब से ख़ुद को कितना ढाल सकीं. इस सीरीज़ के ज़रिए हम इस बात की पड़ताल भी कर रहे हैं कि भारत के संस्थागत ढांचे को किस तरह से और मज़बूत बनाया जा सकता है, ताकि जनता को और बेहतर लोकतांत्रिक प्रशासन दिया जा सके.

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